दो भाई साहब आखिर क्यों झगड़े? सिर्फ अफवाह या कुछ ओर!

– एक संस्था के कार्यालय में तू-तू, मैं-मैं की चर्चाएं आम
– नाम हम नहीं लिखेंगे, आपको ही सोचना है
राजनीतिक संवाददाता, देवास। हमारे अतिप्रिय पाठकों के पिछले दो महीने में मिले असीम प्रेम के लिए हम हृदय से आभारी हैं। पिछले कुछ समय से व्यक्तिगत कारणों से पाठकों के लिए पठनीय सामग्री नहीं दे पाने का हमें हृदय से खेद है। हमारे लिए पाठकों का प्रेम सर्वोपरि है, इसलिए आप सभी श्रेष्ठ पाठकों से क्षमा याचना के साथ एक बार फिर कुछ नया और चुटीला विश्लेषण आपके लिए लेकर आ रहे हैं। प्रयास करेंगे कि पूर्व की भांति आपको प्रतिदिन नए और राजनीतिक गलियारों के सच्चे घटनाक्रमों से अवगत करवाया जाए।
तो बात करते हैं एक संस्था के कार्यालय में पिछले दिनों हुए एक मजेदार घटनाक्रम की। हम न तो संस्था का नाम लिख रहे हैं और न ही उन लोगों के जिनके बीच ये घटनाक्रम घटित हुआ था। तो हुआ यूं कि कुछ महीने पहले संस्था का एक कार्यक्रम निजी होटल में हुआ। कार्यक्रम अच्छे से हो गया और इसके बाद काफी समय भी बीत गया।
बारी आई निजी होटल के बिल चुकाने की तो वह भी चेक के माध्यम से चुका दिया गया। जब कार्यक्रम हुआ, तो जिम्मेदार कोई ओर व्यक्ति थे और जब बिल चुकाया गया, तब तक जिम्मेदार बदल चुके थे। बस यहीं से अनबन और तू-तू, मैं-मैं तक बात पहुंची। नए वाले जिम्मेदार को यह भुगतान नागवार गुजरा और उन्होंने पुराने वाले से इसको लेकर जवाब तलब कर दिया।
दोनों के बीच की बातचीत में एक तीसरे व्यक्ति को भी निशाने पर ही रखा गया। हमारे सूत्रों ने तो यहां तक बताया कि बातचीत हाट टाक जैसी थी। यहां तक बात हुई कि ओर बनाओ इनको… वैसे संस्था में अनुशासन है, इसलिए इस तरह की बातें सामने कम ही आती हैं, परन्तु करें क्या? हमारे सूत्र भी बताने में पीछे नहीं रहते हैं।
तो जैसा सूत्रों ने बताया वैसा हमने आपको बता दिया है। आशा है आप में से कई पाठकों को इस घटनाक्रम की पहले से ही जानकारी जरूर होगी। अंदाजे लगाने में हमारे पाठक भी कम नहीं है, इसलिए यह आप पर ही छोड़ते हैं और इस विश्लेषण पर आपकी टिप्पणियों को भी आमंत्रित करते हैं। एक बार पुन: लंबे अंतराल के बाद आपके समक्ष आने के लिए क्षमा और इसी संकल्प के साथ कि अब प्रतिदिन आपको नए व्यंग मिलेंगे।
।। इतिश्री ।।
बाकी अगले अंक में…